Kuldevi-Kuldevta कुलदेवी-कुलदेवता

आपके Kuldevi-Kuldevta कुलदेवी-कुलदेवता कौन हैं

Kuldevi-Kuldevta कुलदेवी-कुलदेवता के रुष्ट होने से करना पड़ सकता है कई संकटों का सामना,

ऐसा भी देखने में आया है कि कुलदेवी-कुलदेवता की पूजा छूटने या अवहेलना होने के के बाद कुछ वर्षों तक तो कोई खास परिवर्तन नहीं होता, लेकिन जब देवताओं का सुरक्षा चक्र हटता है तो परिवार में घटनाओं और दुर्घटनाओं का दौर शुरू हो जाता है, उन्नति रुकने लगती है, गृहकलह, उपद्रव व अशांति आदि शुरू हो जाती हैं। आगे वंश नहीं चल पाता है। पिताद्रोही होकर व्यक्ति अपने वंश को नष्ट कर लेता है!  

आज भारत में 70 फीसदी परिवार अपने कुलदेवी-कुलदेवता के बारे में नहीं जानते। इसके कारण, एक निगेटिव दबाव उस परिवार के कुल के ऊपर बन जाता हैं और अनुवांशिक प्रॉब्लम पैदा होती हैं।
 
कुलदेवी की कृपा के बिना अनुवांशिक बीमारी पीढ़ी में आती है , एक ही बीमारी के लक्षण सभी लोगों को दिखते हैं।
 
मानसिक विकृतियां अथवा स्ट्रेस पूरे परिवार में आना, कुछ परिवार ऐय्याशी की ओर इतने जाते है कि सबकुछ गवा देते हैं, बच्चे भी गलत मार्ग पर भटक जाते हैं, शिक्षा में अड़चनें आती है।
 
किसी परिवार में सभी बच्चे शिक्षित होते हैं, फिर भी जॉब सही नहीं मिलती। कभी तो किसीके पास पैसा बहुत होता है पर मानासिक समाधान नहीं होता।
 
यात्राओं में अपघात होते है अथवा अधूरी यात्रा होती हैं। बिजनेस में भी कस्टमर पर प्रभाव नहीं बनता अथवा आवश्यक स्थिरता नहीं आती ।
 
परिवार में विवाह आदि मांगलिक कार्यों में अनपेक्षित विघ्न बाधाएं आती है।
 
कोर्ट कचहरी मुकदमेबाजी में अनावश्यक धन का खर्च होता है और परिवार धीरे धीरे क़र्ज़ में डूब जाता।
 

ऐसे लोग बहुत देखे होंगे होंगे जो बहुत पूजा पाठ करते है बहुत धार्मिक है फिर भी उसके परिवार में सुख शांति नही । जो धन आता है घर मे पता ही नही चलता कौनसे रास्ते निकल जाता है ।

 

शादी नही होती , शादी किसी तरह हो गई तो संतान नही होती । घर में कोई तरक्की बरकत नहीं होती। गृह कलेश रहता है।

 

घर परिवार में किसी की नहीं बनती। किसी को भेजो सुनार के पास ,वो मिलता है लुहार के पास।

यदि आप भी ऊपर जैसे किसी परेशानी से संघर्ष कर रहे है तो इसका अर्थ हुआ कि आपके परिवार में आपके कुलदेवता-कुलदेवी उपेक्षित है। 

 

ये संकेत है की आपके कुलदेव या देवी आपसे रुष्ट है | आपके ऊपर से सुरक्षा चक्र हट चूका है जिसके कारण नकारात्मक शक्तिया आप पर हावी हो जाती है । फिर चाहे आप कितना पूजा पाठ करवा लो , कोइ लाभ नही होगा ।

 

यदि किसी के Kuldevi-Kuldevta कुलदेवी-कुलदेवता रुष्ट हो जाएं या उसे बंदी बना लें तो ऋणग्रस्तता, घर में बीमारी, परंपरा क्लेश का सामना करना पड़ता है। इस कारण मनुष्य मानसिक रूप से कमजोर हो जाता है और देवी-देवता की कृपा या अपनी मुक्ति के लिए देहाती भगत ओझाओं के दरबारों मे मन्नत मनौतिया करता है।  पाखंडी बाबाओ, धूर्त और स्वार्थी मांत्रिको, तांत्रिको के चक्कर में पड़कर पैसा, समय, प्रयास खर्च करता है और निराशा में जीवन बिताता है।

 

कुलदेवता या कुलदेवी का हमारे जीवन में बहुत महत्व होता है । इनकी पूजा आदिकाल से चलती आ रही है इनके आशिर्वाद के बिना कोई भी शुभ कार्य नही होता है। यही वो देव या देवी है, जो कुल की रक्षा के लिए हमेशा सुरक्षा घेरा बनाये रखती है ।

 

अगर आप नहीं जानते हैं अपना कुल देवी-कुलदेवता तो अवश्य करे यह दिव्य उपाय

इस दिव्य साधना को निरंतर विधिपूर्वक करते रहने से आपको अवश्य ही कुलदेवी-कुलदेवता का ज्ञान होगा, उनकी कृपा प्राप्त होगी तथा आपका परिवार फिर से एक बार नए उत्साह और नयी ऊर्जा के साथ सफलताओ के ओर यात्रा आरमभ करेगा यह अनुभव सिद्ध दुर्लभ दिव्य साधना ज्योतिर्विदः श्यामा गुरुदेव के पिछले पांच पीढ़ियों के सिद्ध पुरुषो की देन है। जिसे हम आपके सेवा में प्रस्तुत करते है।

 

इस साधना हेतु ‘कुलदेवता यंत्र’, ‘कुलदेवी भैषज’ एवं ‘प्रत्यक्ष सिद्धि माला’ की आवश्यकता होती है। इसके अलावा साधना में कोई विशेष कर्मकाण्ड अर्थात् विधान नहीं होता है।

इस साधना को आप किसी भी दिन किसी भी समय कर सकते हैं

 

प्रातः अथवा रात्रि में स्नान कर पूर्व की ओर मुख कर अपने सामने गुरु चित्र रख कर सद्गुरु का संक्षिप्त पूजन सम्पन्न करें। फिर दाहिने हाथ में जल लेकर संकल्प करें, कि मैं अपने कुल देवता और कुल देवी को प्रसन्न करने के लिए इस साधना को सम्पन्न कर रहा हूं और उनकी कृपा प्राप्त करने की प्रार्थना कर रहा हूं जिससे वे मुझे जीवन में हर प्रकार की सफलता एवं समृद्धि प्रदान करें तथा विपत्तियों से मेरी रक्षा करें। इस भाव को मन में धारण कर निम्न संकल्प का उच्चारण करें…….

 

ॐ अद्य अमुक गोत्रीयः (अपना गौत्र बोलें), अमुक शर्माऽहं (नाम बोलें) स्व कुलदेवता प्रीत्यर्थ सकल मनोकामना पूर्ति निमित्तं कुलदेवता साधनां सम्पत्स्ये।    जल को भूमि पर छोड़ दें,

फिर कुलदेवता यंत्र को पंचामृत स्नान कराएं, जल से पुनः स्नान कराएं तथा स्वच्छ कपडे से पोछ दें और किसी पात्र में पुष्प का आसन देकर स्थापित करें। फिर यंत्र पर कुंकुम, अक्षत व नैवेद्य अर्पित करें।

 

‘कुलदेवी भैषज’ को मौली से लपेट कर यंत्र के मध्य भाग में स्थापित करें, फिर निम्न मंत्र को पांच बार बोलते हुए भैषज पर कुंकुम से पांच बिन्दियां लगाएं।

 

ॐ एतोस्मानं श्री खण्डचन्दनं समर्पयामि ॐ कुल देवतायै नमः।

 

इसके बाद ‘प्रत्यक्ष सिद्धि माला’ से निम्नलिखित मंत्रों में से 1 मंत्र (जो आपको पसंद हो) का 10 माला जाप करना चाहिए और 1 माला हवन सामग्री को शहद के साथ मिलाकर घर में एक छोटे मिट्टी के बर्तन में गाय के गोबर से बने उपले पर जलाना चाहिए और उस पर 108 बार आहुति देना चाहिये

 

ऐसा छह माह (180 दिन) तक करें। और फिर जब आपको समय मिले तो अपने समय के अनुसार मंत्र का जाप करें। ।

मंत्र –

1) उच्छिष्ट चांडालिनी सुमुखी देवी महापिशाचिनी ठः ठः है।

2) उच्छिष्ट चांडालिनी मातंगी सर्व शंकरी नमः स्वाहा

 

यह विशेष कुलदेवी-कुलदेवता मंत्र है । वस्तुत कुलदेवी-कुलदेवता ही साधक को समस्त प्रकार की वैभव, उन्नती, शक्ती, प्रतिष्ठा, सुख:शांति प्रदान करने में सक्षम है। और अन्य कोई भी देव देवता नही दे सकता ।

 

इस लिये आप की उन्नती, सुख:शांति, वैभव, समृद्धि, प्रतिष्ठा, मानसम्मान बढाने एवं रोगदोष, संकट, रूके काम सब दूर करने का अचूक उपाय आप के हाथों में ही है । मै हमेशा आप को यही कहता हूँ की आप अपने कुलदेवी-कुलदेवता को हमेशा खुश रखो । हर पल उनका ध्यान धरो । शुभ काम करने से पहले उनका आर्शीवाद ले । आप के कूलदेवी-कुलदेवता खूश है तो हर खुशी आप के कदमों में है ।

 

108 बार (1 माला) जाप करके हवन में शहद मिलाकर जली हुई उपले पर एक चुटकी डाल दें। बाद में आग ठंडी होने पर राख को कपड़े से छानकर एक कटोरी में रख लें और हर कार्य में सफलता के लिए इसका प्रयोग करें।

 

इससे मन प्रसन्न रहता है. चूँकि यह कार्यक्रम 1 मंत्र के लिए 6 महीने और दूसरे मंत्र के लिए 6 महीने का है, तो चलिए शुरू करते हैं। भक्त के प्रयत्नों को देखकर यह निश्चित है कि कुलदेवता अवश्य कृपा करते हैं।

 

प्रत्येक शुक्रवार को गाय को केले और रोटी का भोग लगाएं।अपने दोनों हाथो में रखकर इस प्रकार लगाए की गौ माता अपनी जिव्हा से आपके दोनों हाथ को स्पर्श करके उस भोग को स्वीकार करें।

 

मासिक धर्म, सोहर, सूतक कोई समस्या नहीं है। उपरोक्त मंत्र का जाप हर 6 माह में करने से एक वर्ष में आपकी प्रगति देखकर आपके शत्रु आश्चर्यचकित हो जायेंगे।

विशेष:

यदि पूजा करने में या समझने में कोई दिक्कत हो तो कॉल अथवा व्हाट्सप्प के माध्यम से 7620314972 पर निशुल्क मार्गदर्शन हेतु संपर्क कर सकते हैं। ।

 

एक बार अच्छे से समझ कर पूजा करें और इसे विधिवत निरंतर जारी रखें।। योग्य  मार्गदर्शन आपकी सफलता में वृद्धि करेगा। यह पूजा पद्धति ज्योतिर्विद श्यामा गुरुदेव द्वारा अपने गुरुजनो और सिद्ध पुरुषो के अनुभव से विभिन्न पद्धतियों का अध्ययन कर मध्य मार्ग के रूप में चुना गया है और सामान्यजन के लाभार्थ प्रस्तुत है।

 

हमारा उद्देश्य केवल ऐसे परिवारों को कुलदेवी/कुलदेवता का सुरक्षा कवच उपलब्ध करवाना हैं और आज की नयी पीढ़ी को परिवार के कुलदेवी – कुलदेवता के कृपा प्राप्ति का साधन और महत्व समझाना हैं.

साधना समाप्ति के बाद प्रसाद परिवार मे ही बाटना है.| 
 
इसके बाद हाथ जोड़कर इनसे अपने परिवार से हुई भूलों आदि के लिए क्षमा मांगें और प्राथना करें की हे प्रभु ,हे देवी ,हे मेरे कुलदेवता या कुल देवी आप जो भी हों हम आपको भूल चुके हैं ,किन्तु हम पुनः आपको आमंत्रित कर रहे हैं और पूजा दे रहें हैं आप इसे स्वीकार करें |हमारे कुल -परिवार की रक्षा करें |हम स्थान,समय,पद्धति आदि भूल चुके हैं,अतः जितना समझ आता है उस अनुसार आपको पूजा प्रदान कर रहे हैं ,इसे स्वीकार कर हमारे कुल पर कृपा करें |

कुल देवी-कुल देवता और इष्ट देव

कई बार लोग अज्ञानतावश यह भूल करते हैं कि इष्ट को कुल देवी या देवता से सम्बन्द्ध कर लेते हैं। इष्ट आपके प्रिय देवी और देवता हैं जिनकी आराधना करके आपका मन प्रसन्न होता है। इसका अभिप्राय है कि पति और पत्नी के अलग-अलग इष्ट हो सकते हैं, पर कुल देवी या कुल देवता तो पूरे परिवार और खानदान के एक ही होते हैं।

 

हिन्दू पारिवारिक आराध्य व्यवस्था में कुल देवता या कुलदेवी का स्थान सदैव उच्च रहा है। हर हर मे कुलदेवी या देवता की पूजा होती है। प्रत्येक हिन्दू परिवार किसी न किसी ऋषि के वंशज हैं । जिनसे उनके गोत्र का पता चलता है। बाद में कर्मानुसार इनका विभाजन वर्णों में हो गया विभिन्न कर्म करने के लिए । जो बाद में उनकी विशिष्टता बन गया और जाती कहा जाने लगा।
 
पूर्व के हमारे ऋषी कुलों अर्थात पूर्वजों के खानदान के वरिष्ठों ने अपने अराध्य देवी देवता को कुल देवता अथवा कुलदेवी का कह कर उन्हें पूजना शुरू किया था । ताकि एक आध्यात्मिक और पारलौकिक शक्ति कुलों की रक्षा करती रहे । जिससे उनकी नकारात्मक शक्तियाँ, उर्जाओं और वायव्य बाधाओं से रक्षा होती रहे तथा वे निर्विघ्न अपने कर्म पथ पर अग्रसर रह उन्नति करते रहे ।
समय क्रम चलता गया, परिवार बढता रहा और जीवन उपार्जन के लिये परिवार के सदस्य दुसरे स्थानों पर स्थानांतरित होने लगे।
 
कोही धर्म परिवर्तन करने, कोही आक्रान्ताओं के भय से विस्थापित होने लगे, जानकार व्यक्ति के असमय मृत होने, संस्कारों के क्षय होने लगा, परिवार मे अन्तरजातिय विवाह से संस्कार भूलते जाने से, परिवार केे पीछे के कारण को न समझ पाने आदि इत्यादि कारण से बहुत से परिवार अपने कुल देवता ता कुलदेवी को भूल गए अथवा उन्हें मालूम ही नहीं रहा।
 
बहुत से परिवार अपने जीविकार्पाजन के लिये गाव छोडकर शहर मै जा बसे या देश छोडकर बिदेश । फीर वो धिरे धिरे परिवार से दूर होते गये और अपने पारिवारीक पूजा पद्धती और संस्कार भूलते गये । अपने अपने कामकाज में लग गये।
 
ऐसे परिवार को पता ही नही की उनके कुल देवता या कुलदेवी कौन हैं ? किस प्रकार उनकी पूजा की जाती है ? इनमे पीढ़ियों से शहरों में रहने वाले परिवार अधिक हैं । कुछ स्वयंभू आधुनिक मानने वाले और हर बात में वैज्ञानिकता खोजने वालों ने भी अपने ज्ञान के गर्व में अथवा अपनी वर्त्तमान अच्छी स्थिति के गर्व में इन्हें छोड़ दिया या इन पर ध्यान नहीं दिया।
 
कुलदेवी या कुलदेवता दरअसल कुल या वंश की रक्षक देवी देवता होते है । ये घर परिवार या वंश परम्परा की प्रथम पूज्य तथा मूल अधिकारी देव होते है । सर्वाधिक आत्मीयता के अधिकारी इन देवो की स्थिति घर के बुजुर्ग सदस्यों जैसी महत्वपूर्ण होती है।
 
अत: इनकी उपासना या महत्त्व दिए बगैर सारी पूजा एवं अन्य कार्य व्यर्थ हो सकते है । इनका प्रभाव इतना महत्वपूर्ण होता है की यदि ये रुष्ट हो जाए तो अन्य कोई देवी देवता दुष्प्रभाव या हानि कम नही कर सकता या रोक नही लगा सकता । इसे यूं समझे – यदि घर का मुखिया पिताजी माताजी आपसे नाराज हो तो पड़ोस के या बाहर का कोई भी आपके भले के लिया आपके घर में प्रवेश नही कर सकता क्यो कि वे “बाहरी ” होते है।
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