Shraadh and Pitra Tarpan 2023
पितृ तर्पण – जौ, काले तिल और जल की जलांजली के माध्यम से पितरों को हम संतुष्ट कर सकते हैं और उनको ऊंचे स्तर पर पहुंचा सकते हैं। इस कर्मा को “पितृ तर्पण” कहते हैं।
पितृ श्राद्ध – यह पूर्वजों को ये बताने का एक तरीका है कि वो अभी भी परिवार का एक अनिवार्य हिस्सा हैं. श्राद्ध का अर्थ पूर्वजों के प्रति श्रद्धा भाव से है। जो मनुष्य उनके प्रति उनकी तिथि पर अपनी सामर्थ्य के अनुसार फलफूल, अन्न, मिष्ठान आदि से ब्राह्मण को भोजन कराते हैं।
पितृ कर्म हेतु वर्ष में 12 अमावस्या , 4 युगादि तिथियां, 14 मन्वादि तिथियां, 12 संक्रांति, 12 वैधृति योग, 12 व्यतिपात योग, 15 तिथियां महालय की 5 अष्टका, 5 अनवष्टिका और 5 पूर्वेद्यु तिथि
पितरों की संतुष्टि के लिए पितृ पक्ष के अलावा साल अन्य दिनों में भी श्राद्ध, तर्पण, पिंडदान, गौ दान एवं गौ सेवा और ब्राह्मण भोजन किया जा सकता है।
इस बारे में महाभारत और नारद पुराण में बताए गए दिनों की गिनती करें तो कुछ 96 दिन ऐसे होते हैं जिनमें श्राद्ध, तर्पण, पिंडदान, गौ दान एवं गौ सेवा और ब्राह्मण भोजन किया जा सकता है ।
इस तरह हर महीने 4 या 5 मौके आते ही हैं जिनमें पितरों की संतुष्टि के लिए पितृ कर्म करवाया जा सकता है। इनमें हर महीने आने वाली अमावस्या, सूर्य संक्रांति, वैधृति और व्यतिपात योग हैं। इनके साथ ही अन्य पर्व और खास तिथियों पर पितृ कर्म किए जा सकते हैं।
कूर्म और वराह पुराण के अनुसार श्राद्ध, तर्पण, पिंडदान का समय
कूर्म पुराण में कहा गया है कि श्राद्ध, तर्पण, पिंडदान करने के लिए जरूरी चीजें, स्थान, समय और सामग्री के मिल जाने पर समय और दिन से जुड़े नियमों पर बिना विचार किए किसी भी दिन श्राद्ध, तर्पण, पिंडदान किया जा सकता है। वराह पुराण में भी यही कहा गया है कि सामग्री और पवित्र जगह मिल जाने पर श्राद्ध करने से उसका पूरा फल मिलता है। इसी तरह महाभारत के अश्वमेधिक पर्व में श्रीकृष्ण ने भी कहा है कि जिस समय भी ब्राह्मण, दही, घी, कुशा, फूल और अच्छी जगह मिल जाए। उसी समय श्राद्ध, तर्पण, पिंडदान कर देना चाहिए।
कूर्म और वराह पुराण के अनुसार श्राद्ध, तर्पण, पिंडदान का समय
12 – साल की 12 अमावस्या – हर महीने आने वाली अमावस्या पर श्राद्ध, तर्पण, पिंडदान कर सकते हैं।
4 – युगादि तिथियां – कार्तिक महीने के शुक्लपक्ष की नौंवी तिथि, वैशाख महीने के शुक्लपक्ष की तीसरी तिथि, माघ महीने की अमावस्या और भाद्रपद महीने के कृष्णपक्ष की तेरहवीं तिथि को श्राद्ध, तर्पण, पिंडदान करने से पितृ संतुष्ट हो जाते हैं।
14 – मन्वादि तिथियां – इनमें फाल्गुन, आषाढ़, कार्तिक, ज्येष्ठ और चैत्र महीने की पूर्णिमा है। इनके साथ ही सावन महीने की अमावस्या पर भी श्राद्ध, तर्पण, पिंडदान किया जा सकता है।
8 – इनके साथ ही कार्तिक महीने के शुक्लपक्ष की बारहवीं तिथि, अश्विन महीने के शुक्लपक्ष की नौवीं तिथि, चैत्र महीने के शुक्लपक्ष की तीसरी तिथि, भाद्रपद महीने के शुक्लपक्ष की तीसरी तिथि, पौष महीने के शुक्लपक्ष की ग्यारहवीं तिथि, आषाढ़ महीने के शुक्लपक्ष की दसवीं तिथि, माघ महीने के शुक्लपक्ष की सातवीं तिथि और भाद्रपद महीने के कृष्णपक्ष की आठवीं तिथि पर श्राद्ध, तर्पण, पिंडदान कर सकते हैं।
12 संक्रांति – हर महीने की 13 से 17 तारीख के बीच में सूर्य राशि बदलता है। जिस दिन सूर्य राशि बदलता है उसे संक्रांति कहते हैं।
12 वैधृति योग – ग्रहों की स्थिति से हर महीने वैधृति योग बनता है।
12 व्यतिपात योग – खास नक्षत्र और वार से मिलकर ये योग बनता है। इस दिन भी पितरों के लिए श्राद्ध, तर्पण, पिंडदान किया जाता है।
15 महालय – हर साल आश्विन महीने में आने वाले पितृ पक्ष में श्राद्ध, तर्पण, पिंडदान किए जाते हैं।
इनके अलावा
5 अष्टका,
5 अनवष्टिका और
5 पूर्वेद्यु पर भी पितरों के लिए श्राद्ध, तर्पण, पिंडदान किया जा सकता है।