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Poorva Janma Astrology-पूर्वजन्म और ज्योतिष

क्या आप जानते हैं, पूर्वजन्म में क्या थे और क्या होंगे अगले जन्म में

Poorva Janma Astrology- हिंदू धर्म ग्रंथों के अनुसार प्राणी का केवल शरीर नष्ट होता है, आत्मा अमर है। आत्मा एक शरीर के नष्ट हो जाने पर दूसरे शरीर में प्रवेश करती है, इसे ही पुनर्जन्म कहते हैं।

पुनर्जन्म के सिद्धांत को लेकर सभी के मन में ये जानने की जिज्ञासा अवश्य ही रहती है कि पूर्व जन्म में वे क्या थे? साथ ही वे ये भी जानना चाहते हैं कि वर्तमान शरीर की मृत्यु हो जाने पर इस आत्मा का क्या होगा?

 

यदि कर्म नियम और पुनर्जन्म को नहीं माना जाए तो ईश्वर उसे सुख दुख क्यों देता है जबकि पूर्व के उसके बुरे कर्म हैं ही नहीं। ईश्वर ने बिना कारण किसी को दीन हीन व किसी को सम्पन्न क्यों बनाया किसी को मूढ़ व किसी को प्रतिभाशाली किसी को ईमानदार व किसी को बेईमान किसी को दयालु व किसी को दुष्ट किसी को परोपकारी व किसी को अत्याचारी आदि क्यों बनाया?

हिंदू धर्म पुनर्जन्म में विश्वास रखता है। इसका अर्थ है कि आत्मा जन्म एवं मृत्यु के निरंतर पुनरावर्तन की शिक्षात्मक प्रक्रिया से गुजरती हुई अपने पुराने शरीर को छोड़कर नया शरीर धारण करती है। उसकी यह भी मान्यता है कि प्रत्येक आत्मा मोक्ष प्राप्त करती है, जैसा गीता में कहा गया है।

 

पुनर्जन्म और पूर्वजन्म की बात याद आ जाना ऐसी घटनाएं समय-समय पर होती रहती हैं। विज्ञान इस तरह की बातों को पूरी तरह स्वीकार नहीं करता है। लेकिन वेदों पुराणों में यह स्पष्ट लिखा गया है कि आत्माओं का सफर निरंतर चलता रहता है।

 

भगवान श्री कृष्ण ने गीता में अर्जुन को उपदेश देते हुये कहा है हे अर्जुन सृष्टि युग ब्रह्मांड में मैंने अनेको बार जन्म लिया और तुम्हारे भी ना जाने कितनी बार जन्म हो चुके है मेरे और तुममें फर्क मात्र इतना है कि मेरा जन्म पृथ्वी युग मे जन्म युग ब्रह्मांड की आवश्यकतानुसार एव धर्म की रक्षा के लिये मेरी इच्छानुसार होता है तथा मुझे अपने सभी जन्म की सभी कारक कारण घटनाएं सम्मण है एव प्राणि का जन्म उसके कर्मानुसार होता है जिसके कारण उसे चौरासी लाख योनियों में फल भोग हेतु विचरण करना होता है जिस प्रकार मनुष्य पुराने वस्त्रों को त्याग नए वस्त्र ग्रहण करता है आत्मा उसी प्रकार अपने कर्मानुसार शरीर एव उंसे अपने पिछले जन्म का स्मरण नही रहता।।

 

वासांसि जीर्णानि यथा विहाय नवानि

गृह्वाति नरोपराणि ।

यथा शरीराणि विहाय जीर्णा न्यन्यानी

संयाति नवानि देही।। गीता 2/22

 

यहूदी ईसाई इस्लाम पुर्नजन्म को नही मानते

 

जबकि सनातन जैन बौद्ध पुर्नजन्म सिद्धान्त स्वीकार करते है।।

 

महाभारत में एक कथा का उल्लेख है कि, भीष्म श्रीकृष्ण से पूछते हैं, आज मैं वाणों की शैय्या पर लेटा हुआ हूं, आखिर मैंने कौन सा ऐसा पाप किया था जिसकी यह सजा है।

 

भगवान श्री कृष्ण कहते हैं आपको अपने छः जन्मों की बातें याद हैं। लेकिन सातवें जन्म की बात याद नहीं है जिसमें आपने एक नाग को नागफनी के कांटों पर फेंक दिया था। यानी भीष्म के रुप में जन्म लेने से पहले उनके कई और जन्म हो चुके थे। इन्हें अपने पूर्व जन्मों की बातें भी याद थी।

 

महाभारत का एक प्रमुख पात्र है शिखंडी। कथा है कि शिखंडी को भी अपने पूर्व जन्म की बातें याद थी। यह पूर्व जन्म में काशी की राजकुमारी था। उस जन्म में हुए अपमान का बदला लेने के लिए ही इसने शिखंडी के रुप में जन्म लिया था।

 

ऋग्वेद के ऋक्संहिता में लिखा है कि महर्षि वामदेव को माता के गर्भ में ही आत्मज्ञान हो गया था। जिससे उन्होंने अनेक जन्मों की बातें जान ली थी। वेदों और पुराणों में ऐसी अनेकों कथाएं हैं जो इस बताती हैं कि मौत और पुनर्जन्म निश्चित सत्य है।

 

सनातन धर्म मतानुसार चौरासी लाख योनि—-

 

सनातन धर्म मे चौरासी लाख योनियों यानी चौरासी लाख शरीर का वर्णन है आत्मा अपने कर्म फलभोग के लिये इन्ही चौरासी लाख योनियों में भ्रमण करती है।

 

इन योनियों को निम्न भागों में विभक्त किया गया है –

 

1-जलचर जल के निवासी प्राणि।।

2-थलचर आवनी के निवासी प्राणी।।

3-नभचर आकाश में विचरण करने वाले प्राणी।।

इन्हें पुनः निम्न चार वर्गों में विभक्त किया गया है-

1-जरायुज यानी माँ के गर्भ से जन्म लेने वाले प्राणि मनुष्य इसी वर्ग में आता है।

2-अंडज-अंडों से उतपन्न प्राणि।।

3-स्वदेज-गंदगी से जन्म लेने वाले प्राणि।।

4-उदिभज-पृथ्वी से जन्म लेने वाले प्राणि।।

चौरासी लाख कुल योनियों की स्थिति

जलीय प्राणि नौ लाख।।

पेड़ पौधे बीस लाख।।

कीड़े मकोड़े ग्यारह लाख।।

पक्षी दस लाख।।

पशु तीस लाख।।

देवता मनुष्य चार लाख।।

 

गीता में भगवान श्री कृष्ण ने स्वयं कहा है कि आत्मा एक शरीर का त्याग करके दूसरा शरीर को धारण कर लेता है। यानी जिसकी भी मृत्यु हुई है फिर से लौटकर किसी दूसरे रुप में आएगा।

 

हमारा यह शरीर पंच तत्वों से मिलकर बना है- आकाश, वायु, अग्नि, जल, धरती। यह जिस क्रम में लिखे गए हैं उसी क्रम में इनकी प्राथमिकता है। आकाश अनुमानित तत्व है अर्थात् जिसको आप प्रूव नहीं कर सकते कि यह ‘आकाश’ है। आकाश किसे कहते हैं? आज तक किसी ने आकाश नहीं देखा, उसी तरह जिस तरह की वायु नहीं देखी, लेकिन वायु महसूस होती है इसलिए अनुमानित तत्व नहीं है। आकाश को अनुमानित तत्व कहना गलत है।

 

खैर। शरीर जब नष्ट होता है तो उसके भीतर का आकाश, आकाश में लीन हो जाता है, वायु भी वायु में समा जाती है। अग्नि में अग्नि और जल में जल समा जाता है। अंत में बच जाती है राख, जो धरती का हिस्सा है। इसके बा‍द में कुछ है जो बच जाता है उसे कहते हैं आत्मा।

 

लेकिन इसके बाद भी बहुत कुछ बचता है। एक छठवें तत्व की हम बात करें- हमने कई बार सुना होगा- मन और मस्तिष्क। निश्‍चित ही मस्तिष्क को मन नहीं कहते तब फिर मन क्या है? क्या वह भी शरीर के नष्‍ट होने पर नष्ट हो जाता है? शरीर तो भौतिक जगत का हिस्सा है, लेकिन मन अभौतिक है। यह मन ही आत्मा के साथ आकाशरूप में विद्यमान रहता है।

 

एक सातवां तत्व भी होता है जो बच जाता है, उसे कहते हैं- बुद्धि। बुद्धि हमारा बोध है। हमने जो भी देखा और भोगा वह बोध ही आकाशरूप में विद्यमान रहता है। इसके बाद एक और अंतिम तत्व होता है जिसे कहते हैं- अहंकार। यह घमंड वाला अहंकार।

 

स्वयं के होने के बोध को ही अंतिम अहंकार कहते हैं। अहंकार से ही सृष्टि की उत्पत्ति हुई है। गीता में आठ तत्वों की चर्चा की गई है। उक्त आठ तत्वों को विस्तार से जानना है तो वेदों का अंतिम भाग उपनिषद पढ़े, जिसे वेदांत भी कहा जाता है। लगभग 1008 उपनिषद हैं।

योग ने मन, बुद्धि और अहंकार को नाम दिया ‘चित्त’। यह चित्त ही चेतना (आत्मा) का मास्टर चिप है। यह मास्टर पेन ड्राइव है, जिसमें लाखों जन्म का डाटा इकट्ठा होता रहता है। आप इसे कुछ भी अच्छा-सा नाम दे सकते हैं।

 

चित्त की वृत्तियों का निरोध तो किया जा सकता है, किंतु चित्त को समाप्त करना मुश्‍किल है और जो इसे समाप्त कर देता है उसे मोक्ष मिल जाता है।

 

जीवन में जब कभी भी परेशानी आती है तो एक बार मन में यह सवाल जरुर उठता है कि आखिर पिछले जन्म में ऐसा कौन सा पाप किया है कि इसकी सजा मिल रही है।अगर आप ऐसा सोचते हैं तो इसमें कुछ गलत भी नहीं है। क्योंकि इस जन्म के सुख दु:ख का संबंध पूर्वजन्म से भी होता है। यह बात परामनोविज्ञान और ज्योतिषशास्त्र दोनों कहता है। ज्योतिषशास्त्र कहता है कि व्यक्ति चाहे तो स्वयं भी अपने पूर्वजन्म के बारे में जान सकता है लेकिन इसके लिए कुछ बातों का ध्यान रखना होगा।

 

 

मृत्यु उपरांत गति विचार:

मृत्यु के बाद आत्मा की क्या गति होगी या वह पुन: किस रूप मेंं जन्म लेगी, इसके बारे मेंं भी जन्म कुंडली देखकर जाना जा सकता है। आगे इसी से संबंधित कुछ प्रमाणिक योग बताए जा रहे हैं- Poorva Janma Astrology-पूर्वजन्म और ज्योतिष

1- कुंडली में कहीं पर भी यदि कर्क राशि में गुरु स्थित हो तो जातक मृत्यु के बाद उत्तम कुल में जन्म लेता है।

 

2- लग्न में उच्च राशि का चंद्रमा हो तथा कोई पापग्रह उसे न देखते हों तो ऐसे व्यक्ति को मृत्यु के बाद सद्गति प्राप्त होती है।

 

3- अष्टमस्थ राहु जातक को पुण्यात्मा बना देता है तथा मरने के बाद वह राजकुल में जन्म लेता है, ऐसा विद्वानों का कथन है।

 

4- अष्टम भाव पर शुभ अथवा अशुभ किसी भी प्रकार के ग्रह की दृष्टि न हो और न अष्टम भाव में कोई ग्रह स्थित हो तो जातक ब्रह्मलोक प्राप्त करता है।

 

5- लग्न में गुरु-चंद्र, चतुर्थ भाव में तुला का शनि एवं सप्तम भाव में मकर राशि का मंगल हो तो जातक जीवन में कीर्ति अर्जित करता हुआ मृत्यु उपरांत ब्रह्मलीन होता है अर्थात उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।

 

6- लग्न में उच्च का गुरु चंद्र को पूर्ण दृष्टि से देख रहा हो एवं अष्टम स्थान ग्रहों से रिक्त हो तो जातक जीवन में सैकड़ों धार्मिक कार्य करता है तथा प्रबल पुण्यात्मा एवं मृत्यु के बाद सद्गति प्राप्त करता है।

 

7- अष्टम भाव को शनि देख रहा हो तथा अष्टम भाव में मकर या कुंभ राशि हो तो जातक योगिराज पद प्राप्त करता है त था मृत्यु के बाद विष्णु लोक प्राप्त करता है।

 

8- यदि जन्म कुंडली में चार ग्रह उच्च के हों तो जातक निश्चय ही श्रेष्ठ मृत्यु का वरण करता है।

 

9- ग्यारहवे भाव में सूर्य-बुध हों, नवम भाव में शनि तथा अष्टम भाव में राहु हो तो जातक मृत्यु के पश्चात मोक्ष प्राप्त करता है।

 

10- बारहवां भाव शनि, राहु या केतु से युक्त हो फिर अष्टमेश (कुंडली के आठवें भाव का स्वामी) से युक्त हो अथवा षष्ठेश (छठे भाव का स्वामी) से दृष्ट हो तो मरने के बाद अनेक नरक भोगने पड़ेंगे, ऐसा समझना चाहिए।

 

11- गुरु लग्न में हो, शुक्र सप्तम भाव में हो, कन्या राशि का चंद्रमा हो एवं धनु लग्न में मेष का नवांश हो तो जातक मृत्यु के बाद परमपद प्राप्त करता है।

 

12- अष्टम भाव को गुरु, शुक्र और चंद्र, ये तीनों ग्रह देखते हों तो जातक मृत्यु के बाद श्रीकृष्ण के चरणों में स्थान प्राप्त करता है 

 

पुनर्जन्म से मुक्ति और मौक्ष प्राप्ति हेतु इस जन्म में शुभकर्म, दान-पुण्य, जीवों की सेवा, सत्संग, संकीर्तन एवं प्रभु भक्ति आदि करनी चाहिए। साथ ही अष्टम राहु अथवा अष्टमेश या भाग्येश के राहु दृष्ट होने पर पितृ शांति कराना भी पुनर्जन्म के चक्कर से मुक्ति दिलाता है।

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