15 दिनों के श्राद्ध पक्ष में सभी अतृप्त पितरों की आत्मा की शांति और मुक्ति के लिए दान, तर्पण करने का विधान है, इसके अलावा यह अमावस्या तिथि पर भी की जाती है।शास्त्रों में कहा गया है कि देवताओं से पहले अपने पूर्वज़ों पितरों को प्रसन्न करना चाहिये। अक्सर अपने पितरों को प्रसन्न करने के प्रयास करते भी हैं। लेकिन जिस प्रकार श्राद्ध पक्ष की अमावस्या को सर्वपितृ अमावस्या मनाई जाती है उसी प्रकार साल में 96 दिन को तर्पण करने से भी पितर प्रसन्न किये जा सकते हैं। जिन जातकों की कुंडली में पितृ दोष हों, जिनकी कुंडली के योगों में संतान प्राप्ति के लक्षण ही न दिखाई देते हों, या फिर भाग्य स्थान में राहू नीच के हों इस प्रकार के पीड़ित योग वाले जातकों को इन 96 तिथियों को तर्पण अवश्य करना चाहिये। मान्यता है कि इससे से उपासक को मनोवांछित फल प्राप्त होते हैं। पौराणिक ग्रंथों में तो यहां तक कहा गया है कि ऐसा करने से न केवल पितृगण बल्कि ब्रह्मा, इंद्र, रूद्र, अश्विनीकुमार, सूर्य, अग्नि, पशु-पक्षियों सहित सब भूत-प्राणियों की तृप्ति होती है। पितरों के आशीर्वाद के बिना जीवन में कुछ भी हासिल नहीं होता| श्राद्ध, तर्पण, पिंडदान और ब्राह्मण भोजन से मनुष्य की आयु बढ़ती है। पितरगण मनुष्य को पुत्र प्रदान कर वंश का विस्तार करते हैं। परिवार में धन-धान्य का अंबार लगा देते हैं।
श्राद्ध-कर्म मनुष्य के शरीर में बल-पौरुष की वृद्धि करता है और यश व पुष्टि प्रदान करता है। पितरगण स्वास्थ्य, बल, श्रेय, धन-धान्य आदि सभी सुख, स्वर्ग व मोक्ष प्रदान करते हैं। श्रद्धापूर्वक श्राद्ध, तर्पण, पिंडदान और ब्राह्मण भोजन करने वाले के परिवार में कोई क्लेश नहीं रहता वरन् वह समस्त जगत को तृप्त कर देता है।
मार्कण्डेयपुराण में बताया गया है कि जिस कुल में श्राद्ध नहीं होता है, उसमें दीर्घायु, नीरोग व वीर संतान जन्म नहीं लेती है और परिवार में कभी मंगल नहीं होता है।
अति सरल पितृ तर्पण अनुष्ठान से इस अमावस्या को घर में तर्पण आरम्भ कर पितरों को तृप्त करें |
हमारा जीवन हमारे माता पिता का दिया हुआ जीवन है| हमारी आत्मा ने हमारे पिता के वीर्य में शरण लिया, माता के गर्भ मेंस्थापित हुआ और गर्भवास पूरा होने पर शरीर के रूप में आत्मा इस धरती पर जीवन के प्राराब्ध को पूर्ण करने के लिए प्रकट हुई |
हमारे माता पिता ने हमारे दादा नाना दादी नानी आदि के द्वारा इस धरती पर जन्म लिया| इसी तरह हमारे दादा दादी नाना नानी आदि, हमारे पड़ दादा पड़ दादी पड़ नाना पड़ नानी आदि से अवतरित हुई | यही है वंश परंपरा और यही हैं हमारे पूर्वज, ancestors और हम इनके वंशज| हम अपनी वंश परंपरा के आज की कड़ी हैं जिसे हमारे बच्चे आगे बढ़ाएंगे |
हम अपने माता पिता और पूर्वजों के ऋणी हैं जो हमारे साथ किसी न किसी कर्मानुबंधन से जुड़े हैं| अपने माता पिता और पूर्वजों के पूर्व जन्मों के कुछ कर्म हमसे जुड़े हैं| Scientifically भी देखें तो हमारे parents के genes ने हमारा निर्माण किया और हमारे parents का उनके parents ने |
पितृ कौन हैं?
पितृ एक अत्यधिक विकसित पूर्वज अस्तित्व हैं जो धार्मिक रूप से इतने उच्च हैं की वे अपने वंशज के आत्मा के उत्थान का काम करते हैं| जीवन की समस्त खुशियों और शुभ फलों के लिये पितरों के आशीर्वाद की आवश्यकता रहती है| अपने पूर्वजों को कृतज्ञता से याद करना और उनकी मुक्ति के लिये कर्म करने से हम उनके ऋणों से मुक्त हो सकते हैं और जिस कर्मानुबंधन से जुड़े हैं, उससे मुक्त हो सकते हैं |
Tarpanam या पितृ तर्पण क्या है?
इन्ही स्वर्गवासी आत्माओं की शान्ति के लिए और उन्हें पितृ लोक से अगले लोकों में प्रस्थान के लिये पितृ तर्पण उनके वंशजों द्वारा किया जाता है| हिन्दू धर्म में ये एक महत्वपूर्ण अनुष्ठान है, पर धार्मिक अनुष्ठान ना भी मानें तो ये किसी के द्वारा भी किया जा सकता है क्यूंकि आप अपने अपने दिवंगत पूर्वज, जिनके genes से आप बने हैं, उन्हें याद कर रहे हैं, उनसे जुड़ रहे हैं |
तर्पण या तर्पणम का अर्थ है वो अर्पण जो तृप्त करे, संतुष्ट करे | इस क्रिया के द्वारा हम देवों का, हृषी जनों का और पितरों के ऋण का आभार प्रकट करते हैं| जब हम अपने दिवंगत पितरों के लिए ये अनुष्ठान करते हैं तो वो पितृ तर्पण बन जाता है| जिस तरह यज्ञ और हवन आदि में अग्नि के द्वारा देवताओं का आह्वान किया जाता है, उसी प्रकार पितृ तर्पण में जल के द्वारा पितरों का आह्वान करके एक खास तरीके से छोड़ा जाता है जिससे पितरों को मुक्ति मिले |
Tarpanam या पितृ तर्पण कब करें?
आम तौर पर दोपहर 11:30 से दोपहर 2 बजे के बीच करना अपेक्षित है, पितृ तर्पण अमावस्या को किया जाता है| वैसे तो हर वर्ष श्राद्ध या महालया के दिन खास हैं, पर पितृ तर्पण हर अमावस्या को किया जा सकता है | अमावस्या के दिन सूर्य और चन्द्र एक साथ होते हैं – सूर्य आत्मकारक हैं और चन्द्र पोषण के कारक| पञ्च महाभूत – पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश – इनका प्रभाव उस दिन भूलोक पर खास होता है| और उस दिन जल तत्व के द्वारा हम अपने पूर्वजों को भोग लगाकर संतुष्ट कर सकते हैं| पितृ लोक चंद्रमा के ठीक ऊपर अनदेखा लोक है जो अमावस्या के दिन सूर्य चन्द्र के सामीप्य से लौकिक हो उठता है |
इस दिन का पितृ तर्पण हमारे या हमारे कुल में किसी के जाने अनजाने में किये गए कर्म – जो पारवारिक श्राप के रूप में जीवन में दुःख का कारण बनती हैं – उन कर्मों से हमें मुक्ति दिला सकती हैं| हमारे पूर्वज अमावस्या के दिन दिन हमारे Tarpanam द्वारा दिये गये अन्न जल को सूक्ष्म रूप से प्राप्त कर संतुष्ट होकर जब प्रकाश की तरफ जाते हैं तो हमें पूरा आशीर्वाद देकर अग्रसर होते हैं | इस दिन पूर्वज पृथ्वी पर अपने वंशजों से अर्पण –Tarpanam के रूप में स्वीकार करने आते हैं और तृप्त होकर आशीर्वाद देकर जाते हैं |
Tarpanam या पितृ तर्पण कैसे करें ?
अगर आपके पास समय है तो किसी कर्म कांडी पुरोहित के द्वारा तर्पण किया जा सकता है| पर आज के भाग दौड़ के जीवन में और working day होने की वजह से शायद हर एक के लिये ये सम्भव ना हो| पर इसका मतलब ये नहीं की आप अपने पितरों का Tarpanam ना कर सकें |
जिस युग हम जी रहें हैं वो कलियुग के साथ नामयुग भी है| इस युग में कर्म काण्ड से ज्यादा महत्वपूर्ण है – भाव|
सिर्फ नामजप से कलियुग में मुक्ति पायी जा सकती है| इस युग में भाव से आप जो कर्म करेंगे वो पूरी तरह स्वीकार्य है| Tarpanam या पितृ तर्पण भी आप खुद कर सकते हैं| आइये आज Tarpanam का एक सरल तरीका समझते हैं जो स्त्री या पुरुष कोई भी अपने पूर्वजों के लिये कर सकता है|
ये Tarpanam या पितृ तर्पण आप अपने घर की छत पर, किसी बालकनी में, घर के पिछले हिस्से में या किसी खुली जगह पर कर सकते हैं| कमरे के अन्दर या घर के मंदिर के आगे नहीं करना है |
पितृ तर्पण आप घर पर भी कर सकते हैं। हाथ जोड़कर सबसे पहले अपने मन में भगवान गणेश का ध्यान करें और आपकी जलांजलि को निर्विघ्न पूर्ण कर उसे पितरों द्वारा स्वीकारे जाने की प्रार्थना करें। अब गहरे तले वाले दो बर्तन लें, ताम्बा, कांसा या पीतल का(स्टील या प्लास्टिक का नहीं होना चाहिये)
Tarpanam या पितृ तर्पण कैसे करें ?
अगर आपके पास समय है तो किसी कर्म कांडी पुरोहित के द्वारा तर्पण किया जा सकता है| पर आज के भाग दौड़ के जीवन में और workingday होने की वजह से शायद हर एक के लिये ये सम्भव ना हो पर इसका मतलब ये नहीं की आप अपने पितरों का Tarpanam ना कर सकें |
जिस युग हम जी रहें हैं वो कलियुग के सथ नामयुग भी है| इस युग में कर्म काण्ड से ज्यादा महत्वपूर्ण है – भाव|
सिर्फ नामजप से कलियुग में मुक्ति पायी जा सकती है| इस युग में भाव से आप जो कर्म करेंगे वो पूरी तरह स्वीकार्य है|
Tarpanam या पितृ तर्पण भी आप खुद कर सकते हैं| आइये आज Tarpanam का एक सरल तरीका समझते हैं जो स्त्री या पुरुष कोई भी अपने पूर्वजों के लिये कर सकता है|
ये Tarpanam या पितृ तर्पण आप अपने घर की छत पर, किसी बालकनी में, घर के पिछले हिस्से में या किसी खुली जगह पर कर सकते हैं| कमरे के अन्दर या घर के मंदिर के आगे नहीं करना है |
पितृ तर्पण आप घर पर भी कर सकते हैं।
हाथ जोड़कर सबसे पहले अपने मन में भगवान गणेश का ध्यान करें और आपकी जलांजलि को निर्विघ्न पूर्ण कर उसे पितरों द्वारा स्वीकारे जाने की प्रार्थना करें।
अब गहरे तले वाले दो बर्तन लें, ताम्बा, कांसा या पीतल का(स्टील या प्लास्टिक का नहीं होना चाहिये)
Tarpanam अनुष्ठान
बैठने के लिये चटाई, mat या कोई धुली साफ़ चादर पर cross leg बैठ जायें| यदि cross legना बैठ सकें तो किसी छोटी स्टूल पर जैसे हो सके, वैसे बैठ जायें| यदि ना बैठ सके तो एक ऊंची स्टूल रख कर उस पर tarpanam कर सकते हैं| जगह को साफ़ करके दक्षिण दिशा की तरफ मुंह करके बैठना है |
सबसे पहले एक बर्तन में शुद्ध जल लेकर इसमें थोड़ी मात्रा में गंगाजल मिलाएं (गंगा जल ना मिले तो सिर्फ शुद्ध जल ले लें)।
अब इसमें दूध, जौ, काले तिल, और चंदन डालकर अच्छी तरह मिला लें।अब दिया और धूपबत्ती जला दें |
अब बर्तन पर सीधा हाथ पहले, फिर उसके ऊपर उल्टा हाथ रखकर पितरों का आवाहन करना है| यदि हो सके तो ये मंत्र बोलें
ॐ आगच्छन्तु मे पितरः इमं गृह्णन्तु जलान्जलिम |
यदि मन्त्र बोलने में कठिनाई हो तो दिल से अपने पितरों को बुलायें की हे मेरे पूर्वज और पितृ गण, आप कृपा करके पधारें और मेरा अनुष्ठान स्वीकार करें| पितरों का आवाहन जल में किया गया है, बर्तन को दिये और धूप बत्ती से तीन आरती दे कर दिये को right साइड में अपने सामने रख दें |
अब एक चम्मच से पहले बर्तन के मिश्रण को बाएं हाथ से ले तथा और जल की धार बना कर सीधे हाथ की अंजुली से दूसरे बर्तन में जल छोड़ें जल इस तरीके से प्रवाहित करना है की सीधे हाथ की तर्जनी ऊँगली (index finger) और अंगूठे (thumb) के बीच से जल प्रवाह हो और दूसरे बर्तन में गिरे।
यदि माता या पिता का स्वर्गवास हो चुका हो, तो उन्हें पहले संबोधित करना है| एक चम्मच से पहले बर्तन के मिश्रण को बाएं हाथ से ले तथा अपने छाती के पास लगायें और दिल से, पूरे भाव से मन में धारणा करें “ये पहला अर्पण मैं (अपनी माता और) अपनी माता की तीन पीढ़ियों को अर्पित करता/करती हूँ | हे (माँ और) माँ की तीन पीढ़ी के आदरणीय पूर्वज गण, अपने वंशज से इस अर्पण को स्वीकार कर मुझे कृतार्थ करें|” अपने वंशज से इस अन्न जल अर्पण की उर्जा को ग्रहण करें, प्रकाश की तरफ अग्रसर हों और मुझ पर अपनी पूरी कृपा करके मुझे आशीर्वाद दें” इस भाव से जल छोड़ें
इसके बाद फिर से एक चम्मच से पहले बर्तन के मिश्रण को बाएं हाथ से ले तथा अपने छाती के पास लगायें और दिल से, पूरे भाव से मन में धारणा करें “ये दूसरा अर्पण मैं (अपने पिता और) पिता की तीन पीढ़ियों को अर्पित करता/करती हूँ| हे (पिताजी और) मेरे पिता की तीन पीढ़ी के आदरणीय पूर्वज गण, अपने वंशज से इस अर्पण को स्वीकार कर मुझे कृतार्थ करें |” अपने वंशज से इस अन्न जल अर्पण की उर्जा को ग्रहण करें, प्रकाश की तरफ अग्रसर हों और मुझ पर अपनी पूरी कृपा करके मुझे आशीर्वाद दें” इस भाव से जल छोड़ें
इसी विधि का पालन करते हुए माता, दादा, दादी आदि के लिए भी करें। मंत्र में हर पुरुष पितर के लिए “तस्मै स्वधा नम:!” और हर महिला पितर के लिए “तस्यै स्वधा नम:” कहें। जैसे पिता के लिए “तस्मै”, तो मात के लिए “तस्यै”।
सभी ज्ञात पितरों के लिए जलांजलि (तर्पण) अर्पित करने के पश्चात् अपने अन्य सभी अज्ञात पितरों के लिए इस प्रकार तर्पण करें:
“जो नरक आदि में यातना भुगत रहे हैं और हमसे जल पाना चाहते हैं, उन सभी की तृप्ति के लिए मैं जलांजलि अर्पण करता/करती हूं।
जो मेरे बंधु–बांधव हैं और जो मेरे बंधु–बंधव नहीं हैं, जो पिछले किसी जन्म के बंधु–बांधव हैं, उनकी तृप्ति के लिए भी मैं ये जलांजलि अर्पण करता/ करती हूं…. वे सभी मेरे द्वारा अर्पण किए इस तर्पण से पूरी तरह तृप्त हों।”
देव, ऋषि, पितृ, मानव सहित ब्रह्म पर्यंत सभी की तृप्ति के लिए मैं ये जलांजलि अर्पण करता/करती हूं।
माता और नाना के कुल के और करोडों कुलों के सातों द्वीपों और समस्त लोकों में रहने वाले प्राणियों की तृप्ति के लिए भी मैं ये जलांजलि अर्पण करता/करती हूं।
इस तर्पण के पश्चात् संभव तो सबसे पहले ब्राह्मण या किसी जरूरतमंद को भोजन कराएं, फिर किसी गाय को रोटी खिलाएं, इसके बाद ही परिवार के सभी सदस्य भोजन करें।
यम स्त्रोत्र और पितृ स्त्रोत्र का पाठ कर सकें तो और भी अच्छा है।
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इसके बाद घर के पूजन स्थल पर जाएं एक बर्तन में काले तिल और एक खाली कटोरी या कोई भी बर्तन लें। दाएं हाथ से तिल उठाकर दूसरे प्लेट या कटोरी में डालते हुए हाथ जोड़कर कहें
“ हे पितृ देवताओं! ये जलांजलि और भोजन सामग्री ग्रहण करें और हमें आशीर्वाद प्रदान करें।
जलते हुए दीये और धुपबत्ती से इस अर्पण की तीन आरती करें| खड़े होकर दोनों हाथ जोड़कर प्रणाम करें और पितरों को याद करते हुए क्षमा प्रार्थना करें की “हे मेरे पितरों, जाने अनजाने में मुझसे या मेरे कुल में किसी से कोई गलती, कोई अपराध हुआ हो तो मैं भरे मन से क्षमा प्रार्थी हूँ, क्षमा करें और तृप्त होकर आशीर्वाद दें |”
फिर तर्पण के जल को मुख पर लगायें और तीन बार
ॐ अच्युताय नमः मंत्र का जप करें।
समर्पण– उपरोक्त समस्त तर्पण कर्म भगवान को समर्पित करें।
ॐ तत्सद् कृष्णार्पण मस्तु।
इसके बाद अर्पण को थोड़ी देर वहीँ रहने दें| कोई जानवर या पक्षी, विशेषकर कौव्वा इस अर्पण को ग्रहण करे तो अच्छा माना जता है, ना भी करे तो कोई बात नहीं| अगर आपने अपने छत पर अर्पण किया है तो शाम तक वहीँ रहने दें अन्यथा थोड़ी देर के बापारात के जल, चावल, तिल को किस पेड़ के नीचे डाल दें की किसी का पैर ना पड़े| आपका पितृ तर्पण सम्पूर्ण हुआ|
तर्पण के समय यदि लोटा गिर जाये तो जल फिर भर लें, दिया बुझ जाये तो फिर जला लें, कहने का मतलब किसी तरह का वहम ना करें, ये मन के भाव की क्रिया है, अपने भाव पर ध्यान रखें| इस पितृ तर्पण को अमावास्या के दिन अपने हाथों से करें और तृप्त पितरों के आशीर्वाद के प्रार्थी बनें |
इस प्रकार आपका तर्पण पूर्ण हो जाता है।
इससे जहां सभी अतृप्त या मोक्ष के लिए भटक रहे पितरों को मुक्ति और शांति मिलती है, वहीं आपको उनका आशीर्वाद भी मिलता है पितरों के आशीर्वाद से आपके जीवन की अनावश्यक परेशानियां, विघ्न–बाधाएं दूर होंगी।
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