पूर्णत: अंधकार युक्त अमावस्या सुप्त पितृ शक्तियों के जागरण का काल
पितृमुक्ति साधना (त्रि अमावस्या)।। जीवन की सफलता असफलता, उतार चढ़ाव से मुक्ति हेतु पित्तरों के लिए पूजन या साधना संपन्न करने के दो मुख्य लाभ हैं |
1-आपके पूर्वज या पितृ के कारण ही आपको यह भौतिक शरीर की प्राप्ति हुई है, यह मानव देह प्राप्त हुई है, अतः यह आपके ऊपर उनका ऋण है, पितृ ऋण है, और अगर आप साधना के माध्यम से उनके पुनर्जन्म का अथवा मुक्ति का मार्ग प्रशस्त करते है, तो इस ऋण से से मुक्त होकर जीवन में उन्नति का मार्ग प्रशस्त करते है और सुखी अनुभव करते हैं।
2-जब तक पितृ का पुनर्जन्म नहीं होगा अथवा मुक्ति नहीं होगी , उनका सही मार्गदर्शन नहीं होगा, उनकी इच्छाएं अतृप्त रहेंगी।इस दशा मे उन्हें देह की तलाश रहती है, जिसकी मदद से वह इच्छाओं को भोग सकें और चूंकि उन्ही के संस्कार आपके शरीर में है, अतः वह आत्मा अपने द्वेष, क्रोध, काम, मोह, आदि को आसानी से (अपनी विभिन्न कामनाएं) आप पर प्रक्षेपित कर सकती है, जिसके फलस्वरूप जीवन में संघर्ष, कलेश, असफलता, आलस्य, प्रमाद, काम, क्रोध, लालच की मात्रा बढ़ जाती है और आप समझ नहीं पाते कि यह क्या हो रहा है।
परन्तु आप साधना द्वारा उसे यदि नवीन जन्म दिलवा दें, तो अपनी इच्छाएं पूरी करने के लिए उन्हें देह मिल जाएगी, वह पुराने संस्कारों को भूलकर नए संस्कारों के अनुसार जीवन जीने लगेंगे । और आप भी उनके कुप्रभावों से मुक्त हो जायेंगे और जीवन में प्रगति, हर प्रकार की श्रेष्ठता, धन, वैभव एवं सफलता प्राप्त कर सकेंगे।
हमारे शास्त्रों मे पितृ मुक्ति से संबंधित कई विशिष्ट साधनाएं उल्ल्खित हैं उनमें से मुख्य है ‘पितृ मुक्ति साधना’ जो कि अत्यधिक तीव्र है और तुरंत प्रभाव देती है।
यह साधना वर्ष में केवल दो तिथियों पर विशेषकर श्राध्द पक्ष अमावस्या तिथि में अथवा दीपावली के निशाचर महारात्रि में सुविधानुसार संपन्न की जाती है।
अधिक जानकारी हेतु संपर्क करें- ज्योतिर्विद श्यामा गुरुदेव – 7397902019-