ज्योतिष शास्त्रों में कुछ ऐसे योगो का वर्णन किया गया है जो इंसान की बदहाली, असफलता और कमजोर भाग्य का कारण बनते हैं। ज्योतिष शास्त्र में इन्हें ही दरिद्र योग कहा जाता है। अगर किसी इंसान की कुंडली में दरिद्र योग बन जाए तो जीवनभर उसे बड़ी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है।
कुंडली में दरिद्र योग का प्रभाव
- दरिद्र योग के प्रभाव से व्यक्ति कंकाली की कगार पर आ जाता है। उसके पास खाने तक के लाले पड़ जाते हैं।
- दिन-प्रतिदिन किसी न किसी काम में नुकसान होने लगता है।
- हर समय झगड़े होने लगते हैं, परिवार में अशांति जगह बना लेती है।
- इसके प्रभाव से व्यापार व्यवसाय में बुरा असर पड़ता है कारोबार में घाटा होने लगता है या फिर यूं कहें कि गरीबी के मकडजाल में फंसने लगता है।
. 5. जीवन में संघर्ष और निश्चय का स्थायी निवास हो जाता है।
हालांकि ज्योतिष शास्त्र में ऐसे कुछ उपाय बताए गए हैं जिनके प्रयोग से दरिद्र योग को निष्क्रिय किया जा सकता है।
क्या आपकी कुंडली में भी है दरिद्र योग? जान लीजिए इन आसान सुत्रो से
यदि किसी कुंडली में ११ वें घर का स्वामी ग्रह अशुभ होकर कुंडली के ६, ८ अथवा १२ वें घर में बैठ जाए तो ऐसी कुंडली में दरिद्र योग का निर्माण हो सकता है।
कुंडली में ११ वें घर के स्वामी ग्रह पर अन्य अशुभ ग्रहों का प्रभाव होने पर कुंडली में बनने वाला दरिद्र योग और भी अधिक अशुभ फलदायी हो जाता है।
जब किसी जातक की कुंडली में लग्नेश कमजोर, धनेश नीच या केंद्र में पाप ग्रह( सूर्य, मंगल, शनि, राहु, केतु) हो तो व्यक्ति निर्धन होता है।
यदि किसी की जन्मपत्रिका में अष्टमेश से नवमेश ज्यादा बलवान होता है तो जातक को धन कमाने में रुचि कम होती है।
यदि कुंडली में गुरु लग्नेश होकर केंद्र में न हो और धनेश निर्बल या नीच का हो तो जातक को आर्थिक संकट से जूझना पड़ता है।
यदि जन्मपत्रिका में वित्तभाव का स्वामी किसी त्रिकभाव में हो या किसी पापग्रह से प्रभावित हो तो जातक को हमेशा धनी की कमी बनी रहती है।
यदि कुंडली में शुक्र, गुरु, चंद्रमा और मंगल क्रम से पहले दसवें, नवें, सातवें या पंचम भाव में नीच का हो तो व्यक्ति निर्धन होता है।
यदि गुरु छठे भाव या 12वें भाव में स्थित हो लेकिन स्वराशि में न हो तो व्यक्ति गरीब होता है।
यदि किसी जातक की कुंडली में धन कारक गुरु से कोई नीच ग्रह दूसरे, चौथे और पांचवें भाव में हो तो व्यक्ति को वित्त संबंधी समस्या हमेशा बनी रहती है।
यदि किसी कन्या की कुंडली में सूर्य और चंद्रमा दोनों कुंभ राशि में विराजित हो और बाकी ग्रह निर्बल हो तो शादी के बाद धन संबंधी परेशानी का सामना करना पड़ता है।
यदि शुभ ग्रह केंद्र में स्थित हो और नीच ग्रह धनभाव में स्थित हो तो दरिद्र योग बनता है।
यदि चंद्रमा से चौथे स्थान पर सूर्य, मंगल, शनि, राहु, केतु हो तो जातक निर्धन बना रहता है।
इसलिए किसी कुंडली में दरिद्र योग के बनने या न बनने का निर्णय लेने के लिए कुंडली के संबंधित भावो और ग्रहो के स्वामी ग्रह का स्वभाव तथा कुंडली के अन्य महत्वपूर्ण तथ्यों के बारे में जान लेना अति आवश्यक है, जो की आजकल प्रचिलित ऑनलाइन कंप्यूटर कुंडली द्वारा सम्भव नहीं है।
दरिद्र योग से बचने के क्या हैं उपाय?
यदि आपकी कुंडली में भी ऊपर दिए सूत्र के अनुसार स्थितियाँ है अथवा आप भी जीवन में दरिद्रता से परेशान है तो
ज्योतिषविदों का कहना है कि कुछ विशेष उपाय कर आप दरिद्र योग के दुष्प्रभाव से बच सकते हैं।दरिद्र योग निवारण के लिए यदि आप व्यक्तिगत कुंडली तथा राशि नक्षत्रानुसार उपाय करना चाहते हैं तो ज्योतिर्विद श्यामा गुरुदेव से संपर्क करें।
संपर्क करने हेतु कृपया यहाँ दिए नंबर पर गुरुदेव से कॉल अथवा व्हाट्सएप द्वारा संपर्क करे- 7620314972
दरिद्रता एक अभिशाप है। शास्त्र कहता है–
त्यजेत्क्षुधाSSर्त्ता महिला स्वपुत्रं,
खादेत्क्षुधार्त्ता भुजगी स्वमण्डम् ।
बुभुक्षितः किं न करोति पापं,
क्षीणा नरा निष्करुणा भवन्ति ।।
अर्थात – भूख से व्याकुल स्त्री अपने पुत्र को भी छोड़ देती है, और सर्पिणी भूख से व्याकुल होकर अपना अंडा खा डालती है । भूखा कौन सा पाप नहीं कर सकता क्योंकि व्याकुल मनुष्य करुणा से रहित होता है ।
हमारे शास्त्रों में ऐसे अनेक अनुष्ठानों एवं स्तोत्र का उल्लेख है जिनसे दरिद्रता से मुक्ति मिलती है। जीवन में एक बार दारिद्रय दहन हेतु शिव कुबेर लक्ष्मी महा होमम के साथ अभिषेक करने से मनुष्य को स्थिर लक्ष्मी की प्राप्ति होती है।